च्यवन ऋषि की कहानी - एक कल्प का वृतांत मै आज आप लोगों के सम्मुख बताने की चेष्टा कर रहा हूं शायद आप सज्जनों को अच्छा लगे.क्योंकि भागमभाग की जिंदगी में मन को एकाग्रचित करने में कथा-कहानी संगीत दंत कथाएं काफी हद तक सार्थक रहे है, इसलिए मैने सोचा एक कहानी ही लिखूं|
तो आइए कहानी पर चलते हैं- एक समय कृपालु,तेजश्वी,यशष्वी राजा सर्याती का राज्य था.उनके राज्य में चारो तरफ यश ही यश था
राजा अपने कर्तब्यों का निर्वाह अच्छे तरीके से कर रहे थे तथा प्रजाजन उनके कर्तब्यों से बहुत खुश थे.
चारो तरफ खुशियां बाहें फैलाए हुए थी कहीं भी किसी भी प्रकार की कमी न थी, इसी बिच राजा के मन मे सपरिवार तीर्थ करने की इच्छा हुई सो उन्होने अपने मंत्री से विचार व्यक्त की.
तत्पस्चात मंत्री ने सारा प्रबन्ध कर यात्रा की ओर सभी लोग चल पड़े| चलते चलते दोपहर हो गये धूप भी ज्यादा तिब्रता दिखाने लगी तो राजा ने विश्राम करने का निर्णय कर सबको ठहरने की आज्ञा दी|
सैनिकों ने सभी पशुओं को अलग अलग बाध विश्राम करने लगे, इसी बीच राजा सर्याति की पुत्री सुकन्या अपनी सखियों को साथ लेकर वनविहार करने निकल पड़ी| घुमते-2 वे वन के काफी अन्दर चली गईं, अचानक उन्हे एक मिट्टी के वाल्मिक से दो प्रकाश पुंज दिखाई पड़े|वह सखियों संग कौतुहल वश देखने चली गईं,
देखते-देखते उन्होने एक सीक(लकड़ी) जहाॅ से प्रकाश आ रहआ था उस वाल्मिक मे अन्दर डाला एकाएक उस वाल्मिक से चीख निकली और वह घबराकर दुसरे प्रकाश मे भी सीक मार दी वाल्मीक फूट गई ऋषि खड़े हो गये और चिल्लाने लगे कौन दुष्ट पापी है जो मेरी आंखे फोड़ दी वे दर्द से व्याकुल हो रहे थे | उनके व्याकुलता ने राजा सर्याति के पड़ाव मे खलबली मचा दी | हाथी, घोड़े, सैनीक सब मरने लगे, इधर दासी ने आकर सारा वृतांत कह सुनाया तब राजा सहित सभी लोग घटना स्थल पर पहुचे|
सुकन्या - उधर राजा सर्याति की पुत्री सुकन्या हाथ जोड़ ऋषि से क्षमा मांग रही है और कह रही है हे महात्मन शिरोमणि मुझसे बहुत बड़ी भुल हुई सो मै क्षमा मांगने की भी अधिकारी नही हूं फिर भी अगर आपको लगता है कि मुझसे आपके लिये कुछ हो सकता है तो बताइए मै वह दंड भोगने के लिए तैयार हूं मै आपकी जीवन पर्यन्त ऋणि रहुंगी|
च्यवन ऋषि- हे कन्या तु बड़ी पापिनी है तुने मुझसे मेरे नेत्र छीन लिए अब मै इस संसार में कैसे रहुंगा इस हृदय विदादक शब्द ने वहां खड़े सभी लोगों के नेत्र मे अश्रु भर दिए हृदय भावनाओ के वेग से फटने लगा सभी लोग घोर दुख के सागर में डुब रहे थे कि एकाएक सुकन्या के शब्द ने सबके दुखों को भेदते हुए आश्चर्यचकित कर दिया|
सर्याति - महात्मन मै राजा सर्याति (ऋषि के चरण पकड़कर) हूं और यह कन्या मेरी पुत्री है और मै इसका पिता इस तरह पापी मै हूं यह नादान है दण्ड का भी भागी मै ही हूं अत: इसे क्षमा कर जो दण्ड हो मुझे दें मुझे स्वीकार होगा| आप इसके बातों को ध्यान न दें | तभी
सुकन्या- नही पिताश्री पाप मैने किया है तो प्रायश्चित भी मुझे ही करना होगा,
मै इनकी जीवनसंगीनी बनूगी और ये मेरी नेत्रों से दखेगें यही विधिलेख है|
सुकन्या के हठ के आगे उनके माता-पिता की एक न चली और च्यवन-सुकन्या की शादी सम्पन्न करा दी गई|
धिरे - धिरे समय बितता गया, एक दिन जब सुकन्या पूजा के लिए निकली तो नारद जी मिले | सुकन्या ने नारद जी को प्रणाम किया तो नारद जी ने आशिर्वाद दिया और कुशल क्षेम पूछा तब सुकन्या ने कहा हे महात्मन आप सब जानते हैं| इसपर नारद जी ने कहा तुम इंद्र की उपासना करो वही तुम्हारे पीड़ा का समाधान करेंगे, और अनतर्ध्यान हो गये|
इन्द्र उपासना- सुकन्या के घोर तपस्या करने के बाद इन्द्र ने दर्शन दिये और मनोवांछित फल मांगने को कहा, सुकन्या ने प्रणाम किया और कहा हे श्रेष्ठ अगर कुछ देना ही चाहते हैं तो हमारे पति को नवकाया प्रदान करें उन्हे मेरे उम्र का करें(आपको बता दें कि सादी के वक्त सुकन्या की उम्र 16साल व च्यवन ऋषि की उम्र 200 साल थी) इतना सुनने के बाद इन्द्रदेव ने धनवन्तरी को बुलाया और सारी बातें बताई|
धनवन्तरी- धनवन्तरी जी सारी बातें सुनकर बोले, हे सुकन्या जिस औषधि के बारे में मै तुम्हे बता रहा हूं ध्यान से सुनों इस औषधि को बनाना बड़ा कठिन है इसे मेरे कथनानुसार बनाना और अपने पति को २१ दिन खिलाना वे फिर से नये जवान हो जाएगें और उस औषधि को सुकन्या को दे दिये |
तत्पस्चात सुकन्या ने उस औषधि का प्राश तैयार किया और च्यवन ऋषि को खिलाने लगी,
ठीक२१ दिन बाद च्यवन ऋषि जवान हुये और उनकी दिनचर्या सफल हुई
धन्यवाद
आगे की कहानी फिर कभी......... .